दावोस में कटोरा लेकर उतरने की तैयारी में पाकिस्तान, निवेश और भरोसा जुटाने की कोशिश

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Posted On:Tuesday, December 30, 2025

पाकिस्तान की आर्थिक स्थिति इस समय एक ऐसे मोड़ पर है जहाँ दुनिया के सबसे बड़े आर्थिक मंचों का उपयोग अब वैश्विक नीतियों पर चर्चा के लिए नहीं, बल्कि वित्तीय सहायता की गुहार लगाने के लिए किया जा रहा है। जनवरी 2026 में स्विट्जरलैंड के दावोस में होने वाली वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम (WEF) की वार्षिक बैठक से पहले पाकिस्तान के डिप्टी प्रधानमंत्री इशाक डार की सक्रियता इसी कड़वी हकीकत को बयां करती है।

दावोस 2026: नीति संवाद या 'इन्वेस्टमेंट हंट'?

पाकिस्तान के लिए दावोस अब बौद्धिक विमर्श का केंद्र नहीं, बल्कि एक 'मार्केटप्लेस' बन गया है जहाँ वह अपनी जर्जर अर्थव्यवस्था के लिए खरीदार तलाश रहा है। इशाक डार ने उच्चस्तरीय बैठक में स्पष्ट निर्देश दिए हैं कि वैश्विक वित्तीय संस्थानों (जैसे वर्ल्ड बैंक, IMF) और निजी क्षेत्र की दिग्गज कंपनियों के साथ अधिक से अधिक बैठकें तय की जाएं।

इस कवायद के पीछे तीन मुख्य चुनौतियां हैं:

  1. विदेशी कर्ज का जाल: पाकिस्तान का विदेशी कर्ज उसकी GDP के खतरनाक स्तर तक पहुँच चुका है।

  2. IMF की कठोर शर्तें: आईएमएफ से मिलने वाली किस्तों ने घरेलू महंगाई को आसमान पर पहुँचा दिया है, जिससे विदेशी निवेश के लिए माहौल और खराब हुआ है।

  3. साख का संकट: बार-बार डिफॉल्ट की चेतावनी और राजनीतिक अस्थिरता ने निवेशकों के मन में डर पैदा कर दिया है।

छवि सुधार का 'PR' दांव

बैठक में 'व्यापक मीडिया इंटरैक्शन' (Extensive Media Engagements) पर ज़ोर देना यह दर्शाता है कि पाकिस्तान अपनी अंतरराष्ट्रीय छवि को लेकर कितना चिंतित है। दावोस में दुनिया भर का मीडिया मौजूद रहता है, और पाकिस्तान इसे एक डैमेज कंट्रोल के अवसर के रूप में देख रहा है।

पाकिस्तान यह कहानी बेचने की कोशिश करेगा कि वह 'बदलाव' की राह पर है, लेकिन धरातल पर आतंकवाद, सुरक्षा चिंताओं और नीतिगत अस्थिरता के सवाल अभी भी अनुत्तरित हैं। श्लेषकों का मानना है कि जब तक बुनियादी सुधार नहीं होते, केवल पीआर (PR) गतिविधियों से विदेशी निवेश जुटाना नामुमकिन है।

भारत और पाकिस्तान: दावोस में दो विपरीत दिशाएं

दावोस के मंच पर भारत और पाकिस्तान की मौजूदगी दुनिया को दो अलग-अलग एशिया की तस्वीर दिखाती है।

तुलनात्मक बिंदु भारत (दावोस 2026) पाकिस्तान (दावोस 2026)
उद्देश्य वैश्विक सप्लाई चेन में नेतृत्व और तकनीक साझा करना। बेलआउट पैकेज और निवेश के लिए भरोसा मांगना।
छवि उभरती हुई वैश्विक महाशक्ति और स्थिर बाजार। आर्थिक संकट और राजनीतिक अस्थिरता से जूझता देश।
दृष्टिकोण दीर्घकालिक विज़न और 'डिजिटल इंडिया' की सफलता। तात्कालिक संकट प्रबंधन और 'सर्वाइवल' की तलाश।

निष्कर्ष: कटोरा या रोडमैप?

पाकिस्तान के लिए दावोस 2026 एक लिटमस टेस्ट की तरह है। क्या वह दुनिया को यह विश्वास दिला पाएगा कि उसके पास भीख मांगने से परे कोई ठोस आर्थिक रोडमैप है? यदि पाकिस्तान इस बार भी बिना किसी ठोस संरचनात्मक सुधार के वादों के साथ लौटता है, तो दावोस की बर्फ में उसकी आर्थिक उम्मीदें और अधिक जम सकती हैं। दावोस में 'भरोसा' मांगने से पहले पाकिस्तान को अपने घर में 'स्थिरता' पैदा करनी होगी, वरना वह खाली कटोरा लेकर लौटने की अपनी पुरानी परंपरा को ही दोहराता रहेगा।


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