मुंबई, 3 दिसंबर, (न्यूज़ हेल्पलाइन) भारत सरकार के दूरसंचार विभाग (DoT) द्वारा स्मार्टफोन निर्माताओं को एक सरकारी साइबर सुरक्षा ऐप 'संचार साथी' (Sanchar Saathi) को सभी नए डिवाइस में प्री-इंस्टॉल करने के निर्देश दिए जाने के बाद, यह मामला विवादों में घिर गया है। प्राइवेसी एक्टिविस्ट और विपक्ष ने इसे 'जासूसी का उपकरण' बताते हुए प्राइवेसी के हनन की चिंता जताई है।
सरकार का निर्देश और उद्देश्य
दूरसंचार विभाग (DoT) ने 28 नवंबर 2025 को एक गोपनीय निर्देश जारी किया, जिसमें मोबाइल निर्माताओं और आयातकों को 90 दिनों के भीतर यह सुनिश्चित करने को कहा गया कि:
- भारत में बेचे जाने वाले सभी नए फोन में 'संचार साथी' ऐप पहले से इंस्टॉल हो।
- यह ऐप यूज़र को आसानी से दिखाई दे और सुलभ हो, तथा इसकी कार्यक्षमता अक्षम (Disable) या प्रतिबंधित न की जा सके।
सरकार का दावा है कि यह कदम दूरसंचार साइबर सुरक्षा के 'गंभीर खतरे' से निपटने के लिए आवश्यक है। 'संचार साथी' ऐप के मुख्य उद्देश्य:
- साइबर धोखाधड़ी को रोकना।
- खोए या चोरी हुए मोबाइल फोन को ट्रैक और ब्लॉक करना।
- नकली या स्पूफ़्ड IMEI नंबर वाले उपकरणों को बाज़ार में आने से रोकना।
- यूज़र्स को यह जानने में मदद करना कि उनके नाम पर कितने मोबाइल कनेक्शन जारी किए गए हैं।
एप्पल और गूगल का कड़ा विरोध
इस सरकारी निर्देश का एप्पल (Apple) और गूगल (Google) सहित प्रमुख स्मार्टफोन कंपनियों द्वारा कड़ा विरोध किए जाने की संभावना है।
- एप्पल की नीति: सूत्रों के अनुसार, एप्पल इस आदेश का पालन नहीं करेगा क्योंकि यह दुनिया भर में थर्ड-पार्टी ऐप्स को प्री-इंस्टॉल करने की उसकी आंतरिक नीति के खिलाफ है। कंपनी का मानना है कि इससे उसके iOS इकोसिस्टम में सुरक्षा और प्राइवेसी संबंधी बड़ी कमजोरियां पैदा हो सकती हैं।
- एंड्रॉइड की चिंता: गूगल के एंड्रॉइड प्लेटफॉर्म के लिए, कंपनियों को भारत के लिए विशेष रूप से ऑपरेटिंग सिस्टम को कस्टमाइज करना पड़ सकता है, जिसे वे स्वीकार नहीं करना चाहतीं।
- कंपनियों ने यह चिंता भी जताई है कि भारत सरकार के इस आदेश का पालन करने से अन्य देशों में भी इसी तरह के सरकारी ऐप्स को प्री-इंस्टॉल करने का दबाव बन सकता है।
राजनीतिक और प्राइवेसी संबंधी विवाद
इस आदेश ने राजनीतिक तूफान खड़ा कर दिया है। विपक्ष के नेताओं ने 'संचार साथी' ऐप को नागरिकों पर 'जासूसी करने' का उपकरण बताया है, जो 'पसंद और सहमति' के सिद्धांतों का उल्लंघन करता है।
सरकार की सफाई: विवाद बढ़ने पर, केंद्रीय संचार मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने मंगलवार को स्पष्ट किया कि ऐप को सक्रिय करना अनिवार्य नहीं है और यूज़र्स इसे अन्य ऐप्स की तरह ही डिलीट (हटा) सकते हैं। हालांकि, सरकारी निर्देश की भाषा (कि इसकी कार्यक्षमता प्रतिबंधित नहीं की जा सकती) और मंत्री के बयान में विरोधाभास बना हुआ है।
प्राइवेसी विशेषज्ञों ने चिंता व्यक्त की है कि यदि यह ऐप एक सिस्टम ऐप के रूप में प्री-इंस्टॉल हो जाता है, तो यह यूज़र की स्पष्ट सहमति के बिना भी संवेदनशील डेटा जैसे SMS, कॉल लॉग्स और फ़ोन की पहचान (IMEI) तक पहुंच बना सकता है।