बिहार विधानसभा चुनाव के प्रचार थमने के बाद भी सोशल मीडिया पर भ्रामक सूचनाओं का वायरल चक्र थमने का नाम नहीं ले रहा है। हाल ही में, एक वीडियो तेजी से प्रसारित हो रहा है जिसमें दावा किया जा रहा है कि बिहार चुनाव प्रचार के दौरान नाराज जनता ने भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के एक नेता के गले में जूतों की माला पहना दी। हालांकि, जयपुर वोकल्स फैक्ट चेक की विस्तृत जाँच में यह दावा पूरी तरह झूठा पाया गया है। यह वीडियो बिहार चुनाव से संबंधित नहीं है, बल्कि 2018 में मध्य प्रदेश में हुई एक घटना का है, जिसे अब मौजूदा राजनीतिक माहौल को प्रभावित करने के उद्देश्य से साझा किया जा रहा है।
झूठा दावा और वीडियो की सच्चाई
दावा: सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म, खासकर फेसबुक और इंस्टाग्राम पर, यह वीडियो व्यापक रूप से शेयर किया जा रहा था कि बिहार चुनाव में प्रचार के लिए निकले बीजेपी नेता को जनता के गुस्से का सामना करना पड़ा और उनके गले में जूतों की माला डाल दी गई।
सच्चाई: फैक्ट चेक से पता चला कि यह वीडियो लगभग सात साल पुराना है और इसका बिहार से कोई लेना-देना नहीं है।
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स्थान और समय: यह घटना जनवरी 2018 में मध्य प्रदेश के धार जिले के धामनोद कस्बे में हुई थी।
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पहचान: वीडियो में दिख रहे बीजेपी नेता धामनोद नगर परिषद अध्यक्ष पद के उम्मीदवार दिनेश शर्मा थे।
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गुस्से का कारण: दिनेश शर्मा जब डोर-टू-डोर कैंपेन के लिए एक गांव में गए, तो वहां के बुजुर्ग मतदाता पानी की गंभीर समस्या को लेकर नाराज थे। जब शर्मा एक बुजुर्ग के पैर छूने के लिए झुके, तो उस बुजुर्ग ने विरोध जताते हुए उनके गले में चप्पलों की माला डाल दी।
इस घटना की पुष्टि उस समय कई प्रमुख मीडिया आउटलेट्स ने की थी। एएनआई ने 7 जनवरी 2018 को अपने आधिकारिक ट्विटर हैंडल पर इस घटना का वीडियो भी साझा किया था।
बार-बार इस्तेमाल हो रहा है पुराना वीडियो
यह पहली बार नहीं है जब मध्य प्रदेश चुनाव के इस पुराने वीडियो को बिहार चुनाव से जोड़कर साझा किया गया है। फैक्ट चेक के दौरान यह भी सामने आया कि कुछ ही दिन पहले, एक और मिलते-जुलते वीडियो को बिहार का बताकर प्रसारित किया गया था, जिसमें एक बीजेपी प्रत्याशी को जूते की माला पहनाई गई थी। वह वीडियो भी 2018 के मध्य प्रदेश चुनाव का ही निकला था।
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भ्रामक प्रचार का उद्देश्य: बिहार विधानसभा चुनाव जैसे संवेदनशील समय में, इस तरह के पुराने और भ्रामक वीडियो को वायरल करने का उद्देश्य स्पष्ट रूप से राजनीतिक हो सकता है—मतदाताओं के बीच सत्ताधारी दल के प्रति नकारात्मक भावना भड़काना और चुनावी नतीजों को अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करना।
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फैक्ट चेक ब्यूरो का निष्कर्ष: जाँच के आधार पर यह स्पष्ट है कि वायरल वीडियो का बिहार चुनाव से कोई संबंध नहीं है और यह एक गलत संदर्भ में शेयर किया जा रही है।
चुनाव आयोग और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स, दोनों ही यूजर्स से अपील करते हैं कि वे किसी भी वीडियो या खबर को आगे साझा करने से पहले उसकी सत्यता की जाँच अवश्य कर लें, खासकर चुनाव से जुड़े संवेदनशील दावों के मामले में।