मुंबई, 02 जुलाई, (न्यूज़ हेल्पलाइन)। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बुधवार को अफ्रीकी देश घाना पहुंचे, जहां राजधानी एक्रॉ में राष्ट्रपति जॉन महामा ने एयरपोर्ट पर उनका स्वागत किया। पीएम मोदी को 21 तोपों की सलामी और गार्ड ऑफ ऑनर दिया गया। उनके स्वागत में भारतीय परिधानों में सजे बच्चों ने संस्कृत श्लोकों का पाठ किया, जिसे उन्होंने विशेष रूप से पीएम मोदी के लिए याद किया था। यह यात्रा 30 वर्षों में किसी भी भारतीय प्रधानमंत्री की पहली आधिकारिक घाना यात्रा है। इससे पहले 1957 में पंडित नेहरू और 1995 में नरसिम्हा राव घाना आए थे।
प्रधानमंत्री मोदी आठ दिनों की पांच देशों की यात्रा पर हैं और उनका पहला पड़ाव घाना है। इसके बाद वे त्रिनिदाद एंड टोबैगो, अर्जेंटीना, ब्राजील और नामीबिया जाएंगे। प्रधानमंत्री के रूप में यह मोदी की त्रिनिदाद एंड टोबैगो और नामीबिया की भी पहली यात्रा होगी। वे ब्राजील में BRICS समिट में भाग लेंगे। घाना प्रवास के दौरान प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रपति महामा के बीच द्विपक्षीय वार्ता होगी जिसमें एनर्जी, कृषि, डिजिटल तकनीक और वैक्सीन हब को लेकर महत्वपूर्ण समझौते होने की उम्मीद है। दोनों नेताओं के बीच भारत के UPI डिजिटल पेमेंट सिस्टम को घाना में लागू करने को लेकर भी बातचीत होगी, जिससे दोनों देशों के बीच डिजिटल लेनदेन आसान हो सकेगा। इसके अलावा प्रधानमंत्री मोदी घाना की संसद को संबोधित करेंगे और वहां के भारतीय समुदाय के 15 हजार से ज्यादा लोगों से मुलाकात करेंगे। घाना के राष्ट्रपति उनके सम्मान में स्टेट डिनर भी आयोजित करेंगे।
भारत और घाना के बीच रिश्ते ऐतिहासिक और मजबूत रहे हैं। अंतरराष्ट्रीय मंचों पर दोनों देश एक-दूसरे का समर्थन करते आए हैं। कोविड काल में भारत ने घाना को 6 लाख कोविड वैक्सीन की सहायता दी थी। घाना ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत की स्थायी सदस्यता का समर्थन किया है। घाना की आजादी में भारत के स्वतंत्रता संग्राम और महात्मा गांधी के विचारों का भी बड़ा प्रभाव रहा है। घाना के पहले राष्ट्रपति और स्वतंत्रता संग्राम के नायक क्वामे एन्क्रूमा को ‘अफ्रीका का गांधी’ कहा जाता है। उन्होंने गांधीजी से प्रेरित होकर अहिंसा और सिविल नाफरमानी के जरिए ब्रिटिश शासन के खिलाफ शांतिपूर्ण आंदोलन चलाया और 1957 में घाना को अफ्रीका का पहला स्वतंत्र देश बनाया। घाना की आजादी के बाद पूरे महाद्वीप में स्वतंत्रता की लहर तेज हो गई और कई देशों ने उपनिवेशवाद से मुक्ति पाई।