मुंबई, 7 नवंबर, (न्यूज़ हेल्पलाइन) डिजिटल दुनिया ने भले ही जानकारी तक हमारी पहुँच को आसान बना दिया हो, लेकिन अब यह एक नई और गंभीर समस्या को जन्म दे रही है: 'ब्रेन रॉट' (Brain Rot)। यह एक बोलचाल का शब्द है, जिसे ऑक्सफोर्ड ने 2024 का 'वर्ड ऑफ द ईयर' भी घोषित किया है। यह शब्द उस संज्ञानात्मक गिरावट (Cognitive Decline) को दर्शाता है जो ऑनलाइन कंटेंट के अत्यधिक उपभोग से होती है। इसमें ध्यान अवधि (Attention Span) का कम होना, सोचने-समझने की क्षमता का घटना और याददाश्त में कमी आना शामिल है।
हाल के शोधों से पता चलता है कि जिस तरह सोशल मीडिया और 'जंक' कंटेंट इंसानी दिमाग को प्रभावित कर रहे हैं, उसी तरह कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) भी 'ब्रेन रॉट' का शिकार हो रही है।
1. इंसानी दिमाग पर सोशल मीडिया का गहरा असर
विशेषज्ञों के अनुसार, सोशल मीडिया और शॉर्ट-फॉर्म वीडियो प्लेटफॉर्म्स एक ऐसी 'डोपामाइन-चालित' फीडबैक लूप (Dopamine-Driven Feedback Loop) बनाते हैं, जो दिमाग को लगातार तेज़, उत्तेजक जानकारी की तलाश में रखता है। इससे हमारे सोचने का तरीका बदल जाता है:
कम होती ध्यान अवधि (Shortened Attention Span): निरंतर स्क्रॉलिंग और तेज़ी से बदलते कंटेंट के कारण हमारा दिमाग किसी एक चीज़ पर लंबे समय तक ध्यान केंद्रित करने की क्षमता खो देता है। अध्ययनों से पता चलता है कि कुछ युवा लोगों की ध्यान अवधि एक मिनट से भी कम हो गई है।
याददाश्त पर चोट (Impact on Memory): जानकारी को तेज़ी से और सतही तौर पर खपाने की आदत दिमाग को डीप प्रोसेसिंग (Deep Processing) या गहनता से सोचने नहीं देती। इससे सूचनाएँ लंबी अवधि की याददाश्त (Long-Term Retention) में दर्ज नहीं हो पातीं।
भावनात्मक और मानसिक थकान: कंटेंट का लगातार प्रवाह 'संज्ञानात्मक अधिभार' (Cognitive Overload) पैदा करता है, जिससे मानसिक थकान, तनाव और चिंता जैसे लक्षण दिखने लगते हैं। इसे ही अक्सर 'डूमस्क्रोलिंग' (Doomscrolling) या बिना मकसद की स्क्रॉलिंग से जोड़ा जाता है।
2. AI पर अत्यधिक निर्भरता: 'संज्ञानात्मक आलस्य'
सोशल मीडिया के अलावा, अब उन्नत AI उपकरणों, जैसे चैटबॉट्स और AI-संचालित सर्च टूल्स, पर हमारी बढ़ती निर्भरता भी इंसानी दिमाग को प्रभावित कर रही है।
शोधकर्ता इसे 'संज्ञानात्मक भारमुक्ति' (Cognitive Offloading) या 'कॉग्निटिव लेज़ीनेस' कहते हैं। इसका मतलब है कि जब हम जटिल कार्यों, निर्णय लेने या तथ्यों को याद रखने का काम AI को सौंप देते हैं, तो हम अपनी दिमागी मांसपेशियों का उपयोग करना कम कर देते हैं।
स्वतंत्र सोच में कमी: जब हम हर सवाल का जवाब तुरंत AI से पूछ लेते हैं, तो हमारी स्वतंत्र रूप से विश्लेषण करने, जटिलता को सहन करने और मौलिक विचार उत्पन्न करने की क्षमता कमजोर हो सकती है। AI उपकरण तब 'संज्ञानात्मक सहायता' (Cognitive Aids) से बदलकर 'संज्ञानात्मक बैसाखी' (Cognitive Crutches) बन जाते हैं।
3. AI मॉडल में 'ब्रेन रॉट': LLM पर शोध
सबसे चिंताजनक बात यह है कि यह 'ब्रेन रॉट' सिर्फ इंसानों तक सीमित नहीं है। टेक्सास ए एंड एम यूनिवर्सिटी और अन्य संस्थानों के शोधकर्ताओं ने "एलएलएम ब्रेन रॉट हाइपोथीसिस" (LLM Brain Rot Hypothesis) प्रस्तावित की है। इस शोध में पाया गया कि जब बड़े भाषा मॉडल (LLMs) को लगातार कम गुणवत्ता वाले, वायरल और सनसनीखेज सोशल मीडिया डेटा पर प्रशिक्षित किया जाता है, तो वे भी संज्ञानात्मक गिरावट से गुज़रते हैं:
तर्क क्षमता में गिरावट: 'जंक डेटा' पर प्रशिक्षित मॉडलों की तर्क क्षमता (Reasoning Ability) और लंबी टेक्स्ट को समझने की क्षमता (Long-Context Comprehension) में 20-30% तक की भारी गिरावट दर्ज की गई।
सोच में 'स्किपिंग': मॉडल तार्किक प्रक्रिया के महत्वपूर्ण चरणों को छोड़ देते हैं और गलत या अप्रासंगिक जवाब देने लगते हैं, जिसे शोधकर्ताओं ने 'थॉट स्किपिंग' कहा है।
'व्यक्तित्व विचलन': चौंकाने वाले निष्कर्षों में, मॉडलों ने 'डार्क ट्रेट्स' (Dark Traits) दिखाना शुरू कर दिया। मनोवैज्ञानिक मूल्यांकन में इनमें अहंकार (Narcissism) और मनोरोग (Psychopathy) जैसे नकारात्मक लक्षण बढ़े हुए पाए गए, जो विषाक्त ऑनलाइन वातावरण का दर्पण हैं।
अपरिवर्तनीय क्षति: शोध का सबसे बड़ा जोखिम यह है कि यह गिरावट स्थायी (Persistent) हो सकती है। बाद में उच्च-गुणवत्ता वाले डेटा पर फिर से प्रशिक्षित करने के बावजूद, मॉडल अपनी मूल क्षमता को पूरी तरह से वापस हासिल नहीं कर पाए, जिससे यह पता चलता है कि एक बार 'ब्रेन रॉट' होने पर क्षति अपरिवर्तनीय हो सकती है।
निष्कर्ष और बचाव के उपाय
AI और सोशल मीडिया के कारण पैदा हुआ यह 'ब्रेन रॉट' एक विषैले फीडबैक लूप (Toxic Feedback Loop) का निर्माण कर रहा है: कम गुणवत्ता वाला सोशल मीडिया कंटेंट इंसानों की सोच को ख़राब करता है, और यही ख़राब कंटेंट भविष्य के AI मॉडलों को प्रशिक्षित कर रहा है, जिससे वे भी ख़राब कंटेंट उत्पन्न करते हैं, और यह प्रक्रिया चलती रहती है।
इस खतरे को रोकने के लिए, विशेषज्ञों ने मनुष्यों और AI दोनों के लिए डेटा की गुणवत्ता और उपभोग की आदतों पर ध्यान केंद्रित करने की सलाह दी है:
- कंटेंट क्यूरेशन: ऑनलाइन खपाई जाने वाली सामग्री के प्रति जानबूझकर सतर्क रहें और केवल सार्थक, शैक्षणिक या उत्थानकारी कंटेंट को प्राथमिकता दें।
- स्क्रीन टाइम सीमा: उपकरणों पर सीमाएँ निर्धारित करें और डिजिटल उपकरणों से नियमित ब्रेक लें ताकि दिमाग को आराम मिल सके।
- AI के लिए डेटा स्वच्छता (Data Hygiene): AI उद्योग को अपने प्रशिक्षण डेटा की गुणवत्ता को प्राथमिकता देनी होगी, जंक और क्लिकबेट सामग्री को सख्ती से फ़िल्टर करना होगा, ताकि मशीनों को इंसानी संज्ञानात्मक गिरावट विरासत में न मिले।