नेपाल ने एक बार फिर भारत को उकसाने वाला कदम उठाते हुए अपनी संप्रभुता का दावा मजबूत करने की कोशिश की है। गुरुवार को नेपाल के सेंट्रल बैंक (NRB) ने 100 रुपए का एक नया नोट जारी किया है, जिसमें भारत के रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण क्षेत्रों – कालापानी, लिपुलेख और लिंपियाधुरा – को नेपाल के नक्शे का हिस्सा दिखाया गया है। नेपाल के इस एकतरफा कदम पर भारत ने कड़ी आपत्ति दर्ज कराई है और स्पष्ट कर दिया है कि इस तरह की हरकतें दोनों देशों के सदियों पुराने रिश्तों में खटास पैदा कर सकती हैं। यह मुद्दा पहली बार 2020 में भी दोनों देशों के बीच तनाव का कारण बना था।
सेंट्रल बैंक का जवाब
भारत की आपत्ति पर जवाब देते हुए नेपाल के सेंट्रल बैंक ने कहा कि 100 रुपए के नोट पर पहले से ही नेपाल का मानचित्र था और इसे सरकार के फैसले के हिसाब से बदला गया है। उन्होंने यह भी बताया कि 10, 50 और 500 रुपए के नोटों में से केवल 100 रुपए के नोट में ही नेपाल का मैप बना हुआ है।
विवाद की जड़: सुगौली संधि (1816)
इस पूरे विवाद को समझने के लिए 4 मार्च 1816 को लागू हुई ऐतिहासिक सुगौली संधि को जानना आवश्यक है, जिसने भारत-नेपाल सीमा को परिभाषित किया था:
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मूल सिद्धांत: संधि में महाकाली नदी को भारत और नेपाल के बीच की सीमा माना गया था।
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अधिकार क्षेत्र: महाकाली नदी के पश्चिमी हिस्से की ओर का इलाका भारत का और पूर्वी हिस्से की ओर का इलाका नेपाल का तय किया गया था।
संधि का इतिहास: 1814-1816 के ब्रिटिश-नेपाल युद्ध के बाद यह समझौता हुआ था, जिसमें नेपाल को सिक्किम, गढ़वाल और कुमाऊं पर अपना दावा छोड़ना पड़ा था। युद्ध से पहले नेपाल का विस्तार पश्चिम में सतलज नदी तक था, जो संधि के बाद पश्चिम में महाकाली और पूर्व में मैची नदी तक सीमित हो गया।
सुगौली संधि के बावजूद विवाद की असल वजह
यदि सुगौली संधि में महाकाली नदी को सीमा मान लिया गया था, तो विवाद की असल वजह संधि की अस्पष्टता में निहित है।
54 विवादित क्षेत्र
इस अस्पष्टता के कारण आज भारत और नेपाल की सीमा पर लगभग 54 स्थान ऐसे हैं, जहाँ समय-समय पर विवाद पैदा होता रहता है। इनमें कालापानी-लिम्प्याधुरा, सुस्ता, मैची घाटी जैसे क्षेत्र प्रमुख हैं। इन विवादित हिस्सों का कुल क्षेत्रफल करीब 60,000 हेक्टेयर के आसपास हो सकता है।
यह सीमा विवाद दशकों पुराना है। 1962 के भारत-चीन युद्ध के बाद नेपाल ने लिपुलेख पर दावा करना शुरू कर दिया था। 1981 में संयुक्त दल बनने से 98% सीमा तय हो गई थी, लेकिन यह प्रमुख मुद्दा अनसुलझा रहा। 2015 में भारत और चीन द्वारा लिपुलेख के रास्ते व्यापार मार्ग बनाने के समझौते पर भी नेपाल ने आपत्ति जताई थी, जिसने इस विवाद को फिर हवा दी थी।